फिल्म निर्माता महेश भट्ट ने दिवंगत गुरु दत्त के बारे में कहा कि उनकी विरासत पुरस्कारों से नहीं, बल्कि जीवन की गहराइयों से बनी है। उन्होंने जीवन की कठिनाइयों को ऐसी कविता में बदल दिया जो खामोशी को भी तोड़ देती है। भारतीय सिनेमा के महान निर्देशकों में से एक गुरु दत्त ने “प्यासा”, “कागज के फूल” और “साहिब बीबी और गुलाम” जैसी कालजयी फिल्में बनाई। उनकी 100वीं जयंती 9 जुलाई को मनाई जाएगी। 1964 में, केवल 39 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, जिसे नींद की गोलियों और शराब के सेवन से जोड़ा जाता है।
महेश भट्ट ने एक समाचार एजेंसी से बातचीत में कहा, ‘‘गुरु दत्त ने जीवन की पीड़ा को कविता में ढाला, ऐसी कविता जो खामोशी को भी चीर देती है। हम उनके सौ वर्ष पूरे होने का जश्न नहीं मनाते, बल्कि उनकी विरासत की ओर लौटते हैं।’’ भट्ट ने याद किया कि जब उन्होंने पहली बार राज खोसला के दफ्तर में गुरु दत्त की एक बड़ी तस्वीर देखी, तो वह मंत्रमुग्ध हो गए थे।
भट्ट ने कहा, ‘‘गुरु दत्त की विरासत पुरस्कारों या पोस्टरों से नहीं बनी है, बल्कि यह खामोशी से बनी है। जब वह खामोशी कमरे में प्रवेश करती है और स्क्रीन के काले होने पर ठहर जाती है। वह हमारे ‘व्यास’ थे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘गुरु दत्त ने अपनी व्यक्तिगत पीड़ा को काव्यात्मक रूप दिया और अपने पात्रों को करुणा और अंतर्विरोध से रोशन किया।’’
उन्होंने महिलाओं के दिलों को छुआ और सुंदरता को सच्चाई में ढाला। ‘कागज के फूल’ का अमर गीत ‘वक्त ने किया’ एक धड़कता हुआ घाव है। उनकी विरासत कोई शैली नहीं है, बल्कि एक ऐसा घाव है जिसे सहन करना पड़ता है।’’ भट्ट ने बताया कि जब वह अपनी 1982 की फिल्म ‘‘अर्थ’’ पर काम कर रहे थे, तब कवि-गीतकार कैफ़ी आजमी ने कहा था कि उन्होंने गुरु दत्त का दर्द विरासत में पाया है।
भट्ट ने कहा, ‘‘हम ‘अर्थ’ के एक गाने पर काम कर रहे थे। जगजीत सिंह ‘तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो’ की धुन बना रहे थे। कैफ़ी साहब चुपचाप बैठे थे, वे सिर्फ धुन ही नहीं सुन रहे थे, बल्कि उसके पीछे छिपे जख्म को भी महसूस कर रहे थे। उन्होंने मुझसे कहा: ‘तुमने गुरु दत्त का दर्द विरासत में पाया है। दर्द ही तुम्हारी धरोहर है।’
भट्ट ने कहा, ‘‘मैं राज खोसला का सहायक रहा था और राज खोसला गुरु दत्त के सहायक थे। यही वह रेखा है, जो शोहरत की नहीं, बल्कि पीड़ा की है। जैसे जख्म पीढ़ी दर पीढ़ी किसी पवित्र धरोहर की तरह सौंपे जाते हैं। कैफ़ी साहब सही थे।” 76 वर्षीय महेश भट्ट ने कहा कि उन्होंने उस जख्म को अपने काम में भी दर्शाया है।
भट्ट ने कहा, ‘‘गुरु दत्त को दोहराया नहीं जा सकता। कुछ फिल्म निर्माता हैं जिनमें सच्चाई दिखाने की वैसी ही भूख है, जैसे संजय लीला भंसाली, जो काव्यात्मक दृश्यों को दर्शाने का जुनून रखते हैं। विशाल भारद्वाज, जो संगीत और कविता के जरिए दर्द को टटोलने का साहस रखते हैं। अनुराग कश्यप, जब वह अंधेरे को बिना किसी परदे के बोलने देते हैं और मोहित सूरी, जो ख़ामोशियों को सुनते हैं और अपने संगीत के माध्यम से अनदेखे पहलुओं को उजागर करते हैं।’’
भट्ट ने कहा, ‘‘ये फिल्मकार भले ही अलग-अलग रास्तों पर चलें, लेकिन गुरु दत्त की तरह ये समझते हैं कि जब सिनेमा गहराई से महसूस करने की हिम्मत करता है, तो वह गतिशील कविता बन जाता है और शायद यही वह लौ है जो आज भी जल रही है।
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